'गुरू द्रोना को गुरूदक्षिणा में
अपना अंगुठा भेट करता एकलव्य!'
"एकलव्य"
एकलव्य महाभारत का एक पाञ है।वह हिरण्य धनु नामक निषद का पुञ था।एकलव्य को अप्रतिम लगन के साथ स्वयं सीखी गई धनुर्विद्या और गुरूभक्ती के लिए जाना जाता है।पिता की मृत्यू के बाद वह शृंगबर राज्य का शासक बना।अमात्य परिषद की मंञणा से उसने न केवल अपने राज्य का संचलन करता है,बल्कि निषाध भीलो की एक सशक्त सेना और नौसेना गठित कर के अपना राज्य की सीमाओ का विस्तार किया।
गुरूद्रोनाचार्यने एकलव्य को गुरूदश्रिनामें अंगुठा मांगकर बहूत बडी भूल की।
आपको क्या लगता है।एकलव्य को तुच्छ माना जाता था क्योकी वह निषादपुञ था।निषादपुञ होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नही कीया।आपही बताओ जिस गुरूने एकलव्य को धनुर्विद्या की शिश्रा नही दिथी वह गुरू गुरूदश्रिना कैसे ले सकते है।
ईसीली गुरूद्रोनाचार्यने गुरूदश्रिना में एकलव्य का अंगुठा मांगकर बहूत बडी भूल की थी।जिस एकलव्यने द्रोना को गुरू मानकर धनुर्विद्या में निपुलता पाई उसी शिष्य का अंगुठा मांगा।क्योकी एकलव्य का अंगुठा काटने के बाद वह धनुष्य नही चला सकता था।
अब आपही बताओयह न्याय हुआक्या?
"जय आदिवासी"